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जो घनीभूत पीड़ा थी, मस्तक मै स्मृति सी छायी। दुर्दिन मैं आंसू बनकर,वह आज बरसने आई।। पंक्ति जयशंकर प्रसाद की किस काव्य रचना से उद्धृत हैं ?