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हिंदी आलोचना की पहली पुस्तक इनमे से कौनसी है
हिंदी आलोचना की पहली पुस्तक इनमे से नटक है।
हिंदी आलोचना की पहली पुस्तक इनमे से नटक
है।
अपभ्रंश के भाषिक एवं व्याकरणिक रूप का विवेचन किसने किया ?
"हेमचन्द्र" अपभ्रंश के भाषिक और व्याकरणिक रूप का स्पष्ट और मानक विवेचन किया । प्राकृत व्याकरण इनका प्रसिद्ध व्याकरण ग्रन्थ है।
“हेमचन्द्र” अपभ्रंश के भाषिक और व्याकरणिक रूप का स्पष्ट और मानक विवेचन किया । प्राकृत व्याकरण इनका प्रसिद्ध व्याकरण ग्रन्थ है।
See lessहित तरंगिणी के लेखक कौन थे ?
'हित तरंगिणी' "कृपाराम" की रचना है।
‘हित तरंगिणी’ “कृपाराम” की रचना है।
See lessनिम्नलिखित में से किसे प्रगतिवाद का प्रवर्तक माना गया है ?
"सुमित्रानंदन पंत" को प्रगतिवाद का प्रवर्तक माना गया है।
“सुमित्रानंदन पंत” को प्रगतिवाद का प्रवर्तक माना गया है।
See lessद्विवेदी युग की प्रमुख पत्रिकाओं के नाम बताइए। अथवा हिन्दी की उन पत्रिकाओं के नाम लिखिए, जिनसे हिन्दी-साहित्य के विकास में बहुत बड़ी सहायता मिली। अथवा द्विवेदी युग की किन्हीं दो पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
इसमें तीन कविताएँ संकलित की गयी हैं- 1. "अन्त:सलिला", 2. "चक्रांत शिला", 3. "असाध्य वीणा" ।
इसमें तीन कविताएँ संकलित की गयी हैं- 1. “अन्त:सलिला”, 2. “चक्रांत शिला”, 3. “असाध्य वीणा” ।
See lessसन् 1947 में अज्ञेय ने किस पत्रिका का संपादन किया, जिसके माध्यम से प्रयोगवादी काव्यांदोलन को शक्ति मिली ?
सन् 1947 में अज्ञेय ने "प्रतीक" पत्रिका का संपादन किया, जिसके माध्यम से प्रयोगवादी काव्यांदोलन को शक्ति मिली ?
सन् 1947 में अज्ञेय ने “प्रतीक” पत्रिका का संपादन किया, जिसके माध्यम से प्रयोगवादी काव्यांदोलन को शक्ति मिली ?
See lessभारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं के नाम लिखिए?
उन्होंने 1873 में 'हरिश्चन्द्र मैगजीन',1868 में 'कविवचनसुधा',और 1874 में स्त्री शिक्षा के लिए 'बाला बोधिनी' नामक पत्रिकाएँ निकालीं।
डॉक्टर नगेंद्र की कौन सी पुस्तक साहित्य अकादमी से परिष्कृत है ?
डॉ. नगेंद्र की "रस सिद्धांत" नामक पुस्तक को साहित्य अकादमी से परिष्कृत किया गया है।
डॉ. नगेंद्र की “रस सिद्धांत” नामक पुस्तक को साहित्य अकादमी से परिष्कृत किया गया है।
व्यावहारिक आलोचना के जनक कहे जाते है?
लाला श्रीनिवास दास के नाटक 'संयोगिता स्वयंवर की प्रेमघन बदरीनारायण द्वारा की गई आलोचना आधुनिक व्यावहारिक आलोचना की शुरुआत मानी जाती है।
लाला श्रीनिवास दास के नाटक ‘संयोगिता स्वयंवर की प्रेमघन बदरीनारायण द्वारा की गई आलोचना आधुनिक व्यावहारिक आलोचना की शुरुआत मानी जाती है।
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