Hello, Hindi Friend!

Please Sign up to join our community!

Welcome Back,

Please sign in to your account!

Forgot Password,

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.

Sorry, you do not have permission to ask a question, You must login to ask a question. Please subscribe to paid membership

Sorry, you do not have permission to ask a question, You must login to ask a question. Please subscribe to paid membership

Please briefly explain why you feel this question should be reported.

Please briefly explain why you feel this answer should be reported.

Please briefly explain why you feel this user should be reported.

  1. This answer was edited.

    मुगल शासक मुहम्मद शाह 'रंगीला' शिव नारायण संप्रदाय का अनुयायी था

    मुगल शासक मुहम्मद शाह ‘रंगीला’ शिव नारायण संप्रदाय का अनुयायी था

    See less
  2. नई कविता के मिथक काव्य नामक आलोचनातमक कृति “सुधीर पचौरी” की है|

    नई कविता के मिथक काव्य नामक आलोचनातमक कृति “सुधीर पचौरी” की है|

    See less
  3. This answer was edited.

    19 नवंबर 2021 को सिख धर्म की स्थापना “गुरु नानक” ने कि थी |

    19 नवंबर 2021 को सिख धर्म की स्थापना “गुरु नानक” ने कि थी |

    See less
  4. हिंदी पद्य साहित्य के शुरुआती समय को आदि काल ,आरम्भिक काल,वीर गाथा काल,वीर काल,चारण काल के नामों से जाना जाता है इसे आरम्भिक काल का नाम “डा हजारी प्रसाद द्विवेदी” ने दिया ।

    हिंदी पद्य साहित्य के शुरुआती समय को आदि काल ,आरम्भिक काल,वीर गाथा काल,वीर काल,चारण काल के नामों से जाना जाता है इसे आरम्भिक काल का नाम “डा हजारी प्रसाद द्विवेदी” ने दिया ।

    See less
  5. प्रसिद्ध प्रबंध-काव्य "पउम चरिउ" के रचनाकार महाकवि स्वयंभू हैं।

    प्रसिद्ध प्रबंध-काव्य “पउम चरिउ” के रचनाकार महाकवि स्वयंभू हैं।

    See less
  6. घनानंद (१६७३- १७६०) रीतिकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं- रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त के अंतिम काव्यधारा के अग्रणी कवि हैं। ये 'आनंदघन' नाम स भी प्रसिद्ध हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिमुक्त घनानन्द का समय सं. १७४६ तक माना है।

    घनानंद (१६७३- १७६०) रीतिकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं- रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त के अंतिम काव्यधारा के अग्रणी कवि हैं। ये ‘आनंदघन’ नाम स भी प्रसिद्ध हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिमुक्त घनानन्द का समय सं. १७४६ तक माना है।

    See less
  7. सिद्ध एवं नाथ साहित्य में अर्द्ध-मागधी अपभ्रंश का प्रयोग हुआ है जिससे आगे चलकर पूर्वी हिन्दी भाषा का विकास हुआ। सिद्ध एवं नाथ साहित्य में आंतरिक अनुभूतियों को व्यक्त करने हेतु जिस संधा भाषा का प्रयोग हुआ है आगे चलकर भक्तिकाल में ज्ञानाश्रयी संत काव्यधारा में परिलक्षित हुई है।

    सिद्ध एवं नाथ साहित्य में अर्द्ध-मागधी अपभ्रंश का प्रयोग हुआ है जिससे आगे चलकर पूर्वी हिन्दी भाषा का विकास हुआ। सिद्ध एवं नाथ साहित्य में आंतरिक अनुभूतियों को व्यक्त करने हेतु जिस संधा भाषा का प्रयोग हुआ है आगे चलकर भक्तिकाल में ज्ञानाश्रयी संत काव्यधारा में परिलक्षित हुई है।

    See less
  8. आख्यायिका शैली का प्रथम उपन्यास श्यामा स्वप्न है।

    आख्यायिका शैली का प्रथम उपन्यास श्यामा स्वप्न है।

    See less
  9. हिंदी साहित्य के सबसे प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र शुक्ल जी ने आदिकाल के धार्मिक-साहित्य को हिंदी साहित्य की सीमा से बाहर माना था।

    हिंदी साहित्य के सबसे प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र शुक्ल जी ने आदिकाल के धार्मिक-साहित्य को हिंदी साहित्य की सीमा से बाहर माना था।

    See less
  10. हठयोग को अपनी साधना पद्धति का अनिवार्य अंग आदिकाल के नाथों ने बनाया था।

    हठयोग को अपनी साधना पद्धति का अनिवार्य अंग आदिकाल के नाथों ने बनाया था।

    See less