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  1. प्रयोगवाद:- प्रयोगवाद हिन्दी साहित्य की आधुनिकतम विचारधार है। इसका एकमात्र उद्देश्य प्रगतिवाद के जनवादी दृष्टिकोण का विरोध करना है। प्रयोगवाद कवियों ने काव्य के भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों को ही महत्व दिया है। प्रयोगवाद में कला पक्ष का अधिक महत्व होता है | प्रयोगवाद में व्यक्ति की समस्याओं का चित्रण नRead more

    प्रयोगवाद:-

    • प्रयोगवाद हिन्दी साहित्य की आधुनिकतम विचारधार है। इसका एकमात्र उद्देश्य प्रगतिवाद के जनवादी दृष्टिकोण का विरोध करना है। प्रयोगवाद कवियों ने काव्य के भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों को ही महत्व दिया है।
    • प्रयोगवाद में कला पक्ष का अधिक महत्व होता है |
    • प्रयोगवाद में व्यक्ति की समस्याओं का चित्रण नहीं होता।
    • प्रयोगवाद केवल साहित्यिक, आंदोलन था |
    • प्रयोगवाद के प्रवर्तक या जनक सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन (अज्ञेय) है।

    प्रगतिवाद:-

    • प्रगतिवाद का अर्थ है ”समाज, साहित्य आदि की निरन्तर उन्नति” पर जोर देने का सिद्धांत। ‘ प्रगतिवाद छायावादोत्तर युग के नवीन काव्यधारा का एक भाग हैं। यह उन विचारधाराओं एवं आन्दोलनों के सन्दर्भ में प्रयुक्त किया जाता है जो आर्थिक एवं सामाजिक नीतियों में परिवर्तन या सुधार के पक्षधर हैं |
    • प्रगतिवाद में विषय-वस्तु पक्ष का अधिक महत्व होता है |
    • प्रगतिवाद में व्यक्ति की समस्याओं की प्रधानता होती है |
    • प्रगतिवाद प्रगतिशील आंदोलन का संबंध स्वाधीनता संघर्ष से था |
    • प्रगतिवाद युग के प्रवर्तक या जनक कार्ल मार्क्स को माना जाता है |
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  2. सिद्ध एवं नाथ साहित्य में अर्द्ध-मागधी अपभ्रंश का प्रयोग हुआ है जिससे आगे चलकर पूर्वी हिन्दी भाषा का विकास हुआ। सिद्ध एवं नाथ साहित्य में आंतरिक अनुभूतियों को व्यक्त करने हेतु जिस संधा भाषा का प्रयोग हुआ है आगे चलकर भक्तिकाल में ज्ञानाश्रयी संत काव्यधारा में परिलक्षित हुई है।

    सिद्ध एवं नाथ साहित्य में अर्द्ध-मागधी अपभ्रंश का प्रयोग हुआ है जिससे आगे चलकर पूर्वी हिन्दी भाषा का विकास हुआसिद्ध एवं नाथ साहित्य में आंतरिक अनुभूतियों को व्यक्त करने हेतु जिस संधा भाषा का प्रयोग हुआ है आगे चलकर भक्तिकाल में ज्ञानाश्रयी संत काव्यधारा में परिलक्षित हुई है।

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  3. रासो काव्य आदिकालीन कविता की मुख्य धारा है। इस्मने वीरता एवं श्रृंगार प्रधान दोनों प्रवृत्तियों का चित्रण किया गया है। इस युग के महत्वपूर्ण रासो काव्यों में पृथ्वीराज रासो, खुमान रासो, बीसलदेव रासो, परमाल रासो प्रमुख हैं। रासो काव्यों के लेखक राजाओं की वीरता की प्रशंसा राज्य दरबार में रहकर करते थे तRead more

    रासो काव्य आदिकालीन कविता की मुख्य धारा है। इस्मने वीरता एवं श्रृंगार प्रधान दोनों प्रवृत्तियों का चित्रण किया गया है। इस युग के महत्वपूर्ण रासो काव्यों में पृथ्वीराज रासो, खुमान रासो, बीसलदेव रासो, परमाल रासो प्रमुख हैं रासो काव्यों के लेखक राजाओं की वीरता की प्रशंसा राज्य दरबार में रहकर करते थे तथा अपने काव्य के माध्यम से उन्हें प्रेरित किया करते थे।

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  4. ऐहलौकिकता, श्रृंगारिकता, नायिकाभेद और अलंकार-प्रियता इस युग की प्रमुख विशेषताएं हैं। प्रायः सब कवियों ने ब्रज-भाषा को अपनाया है।

    ऐहलौकिकता, श्रृंगारिकता, नायिकाभेद और अलंकार-प्रियता इस युग की प्रमुख विशेषताएं हैं। प्रायः सब कवियों ने ब्रज-भाषा को अपनाया है।

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  5. (1) रीतिमुक्त कवि- (ख) घनानन्द तथा (घ) बोधा ठाकुर।(2) रीतिबद्ध कवि- (ङ) आचार्य केशवदास, (ग) बिहारी, (क) भूषण।

    (1) रीतिमुक्त कवि- (ख) घनानन्द तथा (घ) बोधा ठाकुर।
    (2) रीतिबद्ध कवि- (ङ) आचार्य केशवदास, (ग) बिहारी, (क) भूषण।

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  6. इस प्रश्न का उत्तर तीसरा है। शिवा शौर्य ‘महाकवि भूषण’ की रचना है।

    इस प्रश्न का उत्तर तीसरा है। शिवा शौर्य ‘महाकवि भूषण’ की रचना है।

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  7. कवि चंडीदास का “बांग्ला” भाषा को लोकप्रिय बनाने में योगदान था|  

    कवि चंडीदास का “बांग्ला” भाषा को लोकप्रिय बनाने में योगदान था|

     

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