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  1. ‘सृजन’ के आधार पर सुभद्रा कुमारी चौहान के कहानी-संग्रह का नाम “बिखरे मोती” है-। जिसका प्रकाशन वर्ष-1904 ई. है।

    ‘सृजन’ के आधार पर सुभद्रा कुमारी चौहान के कहानी-संग्रह का नाम बिखरे मोती” है-। जिसका प्रकाशन वर्ष-1904 ई. है।
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  2. This answer was edited.

    'जॉर्ज पंचम की नाक' कहानी “कमलेश्वर " ने  लिखी है।

    ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ कहानी कमलेश्वर ” ने  लिखी है।

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  3. राजा निरबंसिया कहानी के लेखक "कमलेश्वर " है।

    राजा निरबंसिया कहानी के लेखक कमलेश्वर “ है।

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  4. कहानी "राजा निरबंसिया" का प्रकाशन वर्ष 1957 ई. है।

    कहानी “राजा निरबंसिया” का प्रकाशन वर्ष 1957 ई. है।

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  5. 'लाल पान बाग की बेगम' कहानी हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार लेखक 'फणीश्वर नाथ रेणु' द्वारा लिखी गई है। यह कहानी स्त्री सशक्तिकरण का उदाहरण प्रस्तुत करती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने यह बताने की कोशिश की है कि एक स्त्री भी अपने जीवन को अपने इच्छा और अपनी शर्तों पर जीना चाहती है। स्त्री भी आत्मसम्माRead more

    ‘लाल पान बाग की बेगम’ कहानी हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार लेखक ‘फणीश्वर नाथ रेणु’ द्वारा लिखी गई है। यह कहानी स्त्री सशक्तिकरण का उदाहरण प्रस्तुत करती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने यह बताने की कोशिश की है कि एक स्त्री भी अपने जीवन को अपने इच्छा और अपनी शर्तों पर जीना चाहती है। स्त्री भी आत्मसम्मान चाहती है।

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  6. थानेदार दाऊद खाँ शाहनी का बहुत आभारी और उपकृत है। शाहनी ने समय-समय पर उसकी मदद की थी। अत: वह भी अपनी सलाह से शाहनी को भविष्य के संकटों से निबटने हेतु कुछ नकद साथ रखने को कहता है। उसकी व्यावहारिक बुद्धि जानती है कि संकट के समय में आपके पास पड़ी ख़ुद की पूँजी बड़ी काम आती है। इसी सदिच्छा और आत्मीयता वRead more

    थानेदार दाऊद खाँ शाहनी का बहुत आभारी और उपकृत है। शाहनी ने समय-समय पर उसकी मदद की थी। अत: वह भी अपनी सलाह से शाहनी को भविष्य के संकटों से निबटने हेतु कुछ नकद साथ रखने को कहता है। उसकी व्यावहारिक बुद्धि जानती है कि संकट के समय में आपके पास पड़ी ख़ुद की पूँजी बड़ी काम आती है। इसी सदिच्छा और आत्मीयता वश दाऊद खाँ चाहता है कि शाहनी हवेली छोड़ते हुए कुछ नकद पैसे साथ रख ले।

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  7. प्रयोगवादी कवि स्वयं कहते हैं कि 'प्रयोग' उनका साध्य या इष्ट नहीं है, अपितु इस काव्य के धारा के माध्यम से उन्हें जो नवीन या नए सत्य की उपलब्धि हुई, उसे समष्टि तक पहुँचने के चेष्टा करना ही हमारा मूल लक्ष्य है और यही हमारा प्रयोग भी है। इन कवियों ने कविता के भाव जगत के उपेक्षा करके शिल्प तथा वैचित्र्यRead more

    प्रयोगवादी कवि स्वयं कहते हैं कि प्रयोग उनका साध्य या इष्ट नहीं है, अपितु इस काव्य के धारा के माध्यम से उन्हें जो नवीन या नए सत्य की उपलब्धि हुई, उसे समष्टि तक पहुँचने के चेष्टा करना ही हमारा मूल लक्ष्य है और यही हमारा प्रयोग भी है। इन कवियों ने कविता के भाव जगत के उपेक्षा करके शिल्प तथा वैचित्र्य विधान की ओर अधिक बल दिया है।

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  8. हिंदी साहित्य के ‘आदिकाल’ को ‘आरंभिक काल’ मिश्रबंधुओं  ने कहा है।

    हिंदी साहित्य के ‘आदिकाल’ को ‘आरंभिक काल’ मिश्रबंधुओं  ने कहा है।

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  9. प्रयोगवाद हिन्दी साहित्य की आधुनिकतम विचारधार है। इसका एकमात्र उद्देश्य प्रगतिवाद के जनवादी दृष्टिकोण का विरोध करना है। प्रयोगवाद कवियों ने काव्य के भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों को ही महत्व दिया है। इन्होंने प्रयोग करके नये प्रतीकों, नये उपमानों एवं नवीन बिम्बों का प्रयोग कर काव्य को नवीन छवि प्रदान कीRead more

    प्रयोगवाद हिन्दी साहित्य की आधुनिकतम विचारधार है। इसका एकमात्र उद्देश्य प्रगतिवाद के जनवादी दृष्टिकोण का विरोध करना है। प्रयोगवाद कवियों ने काव्य के भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों को ही महत्व दिया है। इन्होंने प्रयोग करके नये प्रतीकों, नये उपमानों एवं नवीन बिम्बों का प्रयोग कर काव्य को नवीन छवि प्रदान की है। प्रयोगवादी कवि अपनी मानसिक तुष्टि के लिए कविता की रचना करते थे। जीवन और जगत के प्रति अनास्था प्रयोगवाद का एक आवश्यक तत्व है। साम्यवाद के प्रति भी अनास्था उत्पन्न कर देना उसका लक्ष्य है। वह कला को कला के लिए, अपने अहं की अभिव्यक्ति के लिए ही मानता है।

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  10. 'हिंदी नवरत्न' का प्रकाशन 1910 में हुआ था , जिसके लेखक मिश्रबंधु थे।

    ‘हिंदी नवरत्न’ का प्रकाशन 1910 में हुआ था , जिसके लेखक मिश्रबंधु थे।

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