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  1. कुल 63 नयनारों ने शैव सिद्धान्तो के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी प्रकार विष्णु के भक्त सन्तों को आलवार कहते हैं। ये सभी नायत्मार मुक्तात्मा माने जाते हैं। इनकी मूर्तियाँ मंदिरों में स्थापित की गई है और इनकी पूजा भगवान के समान ही की जाती है।

    कुल 63 नयनारों ने शैव सिद्धान्तो के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी प्रकार विष्णु के भक्त सन्तों को आलवार कहते हैं। ये सभी नायत्मार मुक्तात्मा माने जाते हैं। इनकी मूर्तियाँ मंदिरों में स्थापित की गई है और इनकी पूजा भगवान के समान ही की जाती है।

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  2. आदिकालीन साहित्य का प्रमुख रस “श्रृंगार” माना गया है।

    आदिकालीन साहित्य का प्रमुख रस “श्रृंगार” माना गया है।

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  3. आचार्य धनञ्जय के अनुसार नायक के मानसिक, वाचिक, कायिक व्यवहार ही नाट्य की वृत्तियाँ कहलाती हैं। आचार्य धनञ्जय तथा भरत ने भी नाट्य की “चार” वृत्तियाँ स्वीकार की हैं।

    आचार्य धनञ्जय के अनुसार नायक के मानसिक, वाचिक, कायिक व्यवहार ही नाट्य की वृत्तियाँ कहलाती हैं। आचार्य धनञ्जय तथा भरत ने भी नाट्य की “चार” वृत्तियाँ स्वीकार की हैं।

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  4. उन्होंने (“तरुण भारत, किसान मित्र, बालक, युवक, कर्मवीर, हिमालय, नई धारा, योगी, जनता, जनवाणी”) आदि अनेक साप्ताहिक व मात्रिक पत्र-पत्रिकाओं का सफलतापूर्वक संपादन करके एक लोकप्रिय संपादक के रूप में यश उन्होंने प्राप्त किया।

    उन्होंने (“तरुण भारत, किसान मित्र, बालक, युवक, कर्मवीर, हिमालय, नई धारा, योगी, जनता, जनवाणी”) आदि अनेक साप्ताहिक व मात्रिक पत्र-पत्रिकाओं का सफलतापूर्वक संपादन करके एक लोकप्रिय संपादक के रूप में यश उन्होंने प्राप्त किया।

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  5. जाति-पांति पूछे ना कोई- हरि को भजै सो हरि का होई यह नारा स्वामी रामानंद ने दिया था|

    जाति-पांति पूछे ना कोई- हरि को भजै सो हरि का होई यह नारा स्वामी रामानंद ने दिया था|

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  6. इसके सम्पादक 'श्यामसुन्दर दास, महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदी, कालीदास और राधाकृष्ण दास' थे।

    इसके सम्पादकश्यामसुन्दर दास, महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदी, कालीदास और राधाकृष्ण दास’ थे।

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